Friday, December 27, 2024

श्री राम भक्त संकट मोचन जय हनुमान बजरंग बाण और हनुमान अष्टक सुंदरकांड प्रेमी भजन

  हनुमत डटे रहो आसन पर,जब तक कथा राम की होय

हनुमत डटे रहो आसन पर,

जब तक कथा राम की होय...2R

 अरे! कथा राम की होय,

जब तक कथा राम की होय...2R

 हनुमत डटे रहो आसन पर,

जब तक कथा राम की होय...2R 1

मंगल भवन अमंगल हारी,

जय सिया राम, जय जय सिया राम

 द्रवहु दशरथ अजर बिहारी,

जय सिया राम, जय जय सिया राम

 उमापति संग जपत मुरारी,

अरे! कथा राम की होय...2R

हनुमत डटे रहो आसन पर,

जब तक कथा राम की होय...2R 2

बिनु सतसंग बिबेक न होई

जय सिया राम, जय जय सिया राम

 राम कृपा बिनु सुलभ न सोई

जय सिया राम, जय जय सिया राम

 सिय राम मय सब जग जानी,

जय सिया राम, जय जय सिया राम

 करहु प्रणाम जोरी जुग पानी

अरे! कथा राम की होय...2R

हनुमत डटे रहो आसन पर,

जब तक कथा राम की होय...2R 3

॥ संकट मोचन हनुमानाष्टक ॥

॥ हनुमानाष्टक ॥

बाल समय रवि भक्षी लियो तब,

तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।

ताहि सों त्रास भयो जग को,

यह संकट काहु सों जात न टारो ।

देवन आनि करी बिनती तब,

छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो (२)

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,

जात महाप्रभु पंथ निहारो ।

चौंकि महामुनि श्राप दियो तब,

चाहिए कौन बिचार बिचारो ।

कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,

सो तुम दास के सोक निवारो

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो (२)

अंगद के संग लेन गए सिय,

खोज कपीस यह बैन उचारो ।

जीवत ना बचिहौ हम सो जु,

बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।

हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,

लाए सिया-सुधि प्राण उबारो

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो (२)

रावण त्रास दई सिय को सब,

राक्षसी सों कही शोक निवारो ।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु,

जाए महा रजनीचर मारो ।

चाहत सीय असोक सों आगिसु,

दै प्रभु-मुद्रिका शोक निवारो

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो (२)

बान लग्यो उर लछिमन के तब,

प्राण तजे सुत रावन मारो ।

लै गृह बैद्य सुषेन समेत,

तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।

आनि सजीवन हाथ दई तब,

लछिमन के तुम प्रान उबारो

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो (२)

रावन युद्ध अजान कियो तब,

नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,

मोह भयो यह संकट भारो |

आनि खगेस तबै हनुमान जु,

बंधन काटि सुत्रास निवारो

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो (२)

बंधु समेत जबै अहिरावन,

लै रघुनाथ पताल सिधारो ।

देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,

देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।

जाय सहाय भयो तब ही,

अहिरावन सैन्य समेत संहारो

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो (२)

काज किये बड़ देवन के तुम,

बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।

कौन सो संकट मोर गरीब को,

जो तुमसे नहिं जात है टारो ।

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,

जो कछु संकट होय हमारो

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो (२)

॥ दोहा ॥

लाल देह लाली लसे,

अरु धरि लाल लंगूर ।

वज्र देह दानव दलन,

जय जय जय कपि सूर ॥

॥ बजरंग बाण पाठ 
॥ जय हनुमंत संत हितकारी ॥

|| दोहा ||

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, 

बिनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, 

सिद्ध करैं हनुमान॥

|| चौपाई ||

जय हनुमंत संत हितकारी।

सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥

जन के काज बिलंब न कीजै।

आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसे कूदि सिंधु महिपारा।

सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥

आगे जाय लंकिनी रोका।

मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा।

सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

बाग उजारि सिंधु महँ बोरा।

अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा।

लूम लपेटि लंक को जारा॥

लाह समान लंक जरि गई।

जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी।

कृपा करहु उर अंतरयामी॥

जय जय लखन प्रान के दाता।

आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जै हनुमान जयति बल-सागर।

सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले।

बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा।

ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥

जय अंजनि कुमार बलवंता।

शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक।

राम सहाय सदा प्रतिपालक॥

भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर।

अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की।

राखु नाथ मरजाद नाम की॥

सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै।

राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा।

दुख पावत जन केहि अपराधा॥

पूजा जप तप नेम अचारा।

नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं।

तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥

जनकसुता हरि दास कहावौ।

ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा।

सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥

चरन पकरि, कर जोरि मनावौं।

यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई।

पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता।

ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल।

ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥

अपने जन को तुरत उबारौ।

सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै।

ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥

पाठ करै बजरंग-बाण की।

हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं।

तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥

धूप देय जो जपै हमेसा।

ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

|| दोहा ||

उर प्रतीति दृढ़ सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।

बाधा सब हर करैं, सब काम सफल हनुमान॥


॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं,
जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं,
श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥
॥ आरती ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की

सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥

जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
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